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एनएच 10 मूवी रिव्यू

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एनएच 10 मूवी रिव्यू

क्रिटिक रिव्यू

बॉलिवुड मेकर्स को सड़क, रोड, हाइवे पर फिल्में बनाना काफी पसंद है। आलिया भट्ट की 'हाइवे' भी कहीं न कहीं दिल्ली एनसीआर से जुडी थी, जहां फिरौती के लिए किडनैप होता है। अब यह बात अलग है कि 'हाइवे' पर किडनैप की कहानी मसाला फिल्मों के ट्रैक पर चलकर लव स्टोरी में तब्दील हो जाती है। दूसरी ओर यंग डायरेक्टर नवदीप सिंह की तारीफ करनी होगी, जिन्होंने फिल्म की स्क्रिप्ट के साथ कहीं भी किसी तरह का समझौता नहीं किया है। अपनी पिछली फिल्म 'मनोरमा- सिक्स फीट अंडर' से नवदीप सिंह ने दर्शकों और क्रिटिक्स की जो उम्मीदें बांधी थी, उसपर वह खड़े उतरे। लंबे गैप के बाद इस बार जब वह अपनी दूसरी फिल्म के साथ आए तो उन उम्मीदों पर सौ फीसदी पर न सिर्फ खरे उतरे, बल्कि सच कहा जाए तो इस बार उन्होंने पहले से कहीं ज्यादा बेहतर काम करके वाहवाही भी बटोरी। नवदीप की यह फिल्म दिल्ली से सटे गुडगांव से शुरू होती है। इसी गुड़गांव के बारे में फिल्म में एक संवाद है 'बच्चा है जवान हो रहा है' और 'एनएच 10' की कहानी यहीं से शुरू होकर बहादुरगढ़, रोहतक, सिरसा होते हुए पंजाब की सीमा के पास खत्म होती है। हरियाणा का जो भव्य, वेस्टर्न लुक हमें गुड़गांव के आसपास दिखाई देता है, वही लुक कुछ आगे चलकर ऐसे गांवों में जा पहुंचता है जहां आज भी बरसों पुरानी वही रीतियां और कायदे कानून हैं, जो आधुनिक समाज में तालिबानी हुकूमत जैसे हैं।

कहानी : अर्जुन (नील भूपलम) और मीरा (अनुष्का शर्मा) की वैवाहिक लाइफ बड़े मजे से कट रही है। मीरा गुड़गांव की एक नामी ऐड एजेंसी में क्रिएटिव डायरेक्टर है। एक दिन देर रात पार्टी में दोनों पहुंचते हैं, कुछ देर बाद मीरा को अचानक ऑफिस के लिए अकेले ही निकलना पड़ता है। रास्ते में मीरा की कार का बाइक पर सवार दो युवक पीछा करते हैं। मीरा जब कार नहीं रोकती है तो वह लोहे की रॉड से कार का शीशा तोड़ देते हैं। इस घटना के बाद अर्जुन अपने पुलिस ऑफिसर दोस्त सहाय की मदद से मीरा के लिए रिवॉल्वर का लाइसेंस बनवा लेता है। कुछ दिन बाद अर्जुन और मीरा हॉलिडे के लिए अपनी गाड़ी से निकलते हैं। गुड़गांव क्रॉस करने के बाद उनकी गाड़ी 'एनएच 10' के वीरान इलाके से गुजर रही है। अर्जुन रास्ते में चाय-पानी के लिए एक ढाबे के पास कार रोकता है। उसी वक्त उनकी कार के सामने एक लड़की टकराती है। लड़की मीरा से मदद करने की गुहार करती है, लेकिन मीरा आगे निकल जाती है। कुछ देर बाद मीरा और अर्जुन देखते हैं कि ढाबे के सामने उस लड़की और एक लड़के की कुछ लोग बुरी तरह से पिटाई करते-करते अपनी गाड़ी में डालते हैं और ढाबे पर मौजूद सभी लोग मूकदर्शक बने हुए हैं। अर्जुन जब उन्हें बचाने की कोशिश करता है तो हमलावर युवकों में से एक युवक उसे तमाचा जड़ देता है। गुस्से से तमतमाया अर्जुन उनकी कार का पीछा करना शुरू करता है। मीरा उसे ऐसा न करने और अपनी मंजिल पर जाने के लिए कहती है, लेकिन अर्जुन के अंदर का मर्द शायद जाग चुका है। वाइफ के सामने पिटाई और बैग में रिवॉल्वर होने के एहसास के चलते वह मीरा की एक नहीं सुनता। कछ देर बाद अर्जुन घने जंगल में वहां पहुंचता है, जहां गाड़ी में सवार सभी लोग उस लड़की और लड़के को मारकर उन्हें दफानाने की तैयारी कर रहे हैं। दरअसल, लडकी (पिंकी) ने घरवालों की मर्जी और खाप की रवायत के खिलाफ अपने प्रेमी से शादी करने का जुर्म किया था जो अम्माजी (दीप्ति नवल) उसके भाई सतबीर (दर्शन कुमार) के साथ साथ फौजी मामा (रवि झाकल) को कतई बदर्शत नहीं। यही वजह है कि वे पिंकी और उसके प्रेमी की बेरहमी से हत्या कर देते हैं। ठीक उसी वक्त अर्जुन और मीरा इन हत्यारों के सामने आ जाते हैं। सतबीर के सामने बहन और उसके प्रेमी की लाशें पड़ी हैं, ऐसे में मामा उसे सलाह देता है कि अर्जुन को मार डालो और लड़की को साथ ले चलते हैं। यहीं से मीरा और अर्जुन की सामने खड़ी मौत को हराने की जंग रात के अंधेरे में घने जंगलों के बीच से शुरू होती है।

ऐक्टिंग : मीरा के किरदार में अनुष्का की ऐक्टिंग लाजवाब है। इंटरवल के बाद पूरी फिल्म मीरा के किरदार पर टिकी है, जिसे अनुष्का ने मीरा के किरदार को इस ईमानदारी के साथ निभाया है कि हॉल से बाहर आने के बाद हर किसी की जुबां पर मीरा की दिलेरी की बात होती है। सतबीर के किरदार में बेशक दर्शन कुमार के हिस्से में संवाद तो बेहद कम आए, लेकिन अपनी आंखों औैर गुस्से से तमतमाते चेहरे और फेस एक्सप्रेशन से दर्शन कुमार ने क्रूर सतबीर के किरदार को जीवंत कर दिखाया। नील भूपलम के करने के लिए कुछ खास नहीं था, लेकिन मीरा के पति अर्जुन के किरदार के साथ नील ने न्याय किया है। अम्माजी के रोल में दीप्ति और सतबीर के मामा बने रवि झाकल अपनी पहचान छोड़ने में कामयाब रहे।

निर्देशन : डायरेक्टर नवदीप सिंह की स्टार्ट टू लास्ट तक कहानी, किरदारों, माहौल पर सौ फीसदी पकड़ है। नवदीप की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने इस कहानी को अपनी निर्देशन प्रतिभा के दम पर ऐसे अंदाज में पेश किया जो रिऐलिटी के बेहद करीब लगता है।

संगीत : फिल्म के साथ तीन चार संगीतकार जुड़े हैं। फिल्म के गाने बैकग्राउंड में हैं और माहौल पर पूरी तरह से फिट हैं। वैसे ऐसी कहानी में आमतौर से गाने फिल्म की रफ्तार को रोकते हैं, लेकिन यहां ऐसा नहीं है, हर गाने का मतलब पर्दे पर समझ आता है। हां, यह बात समझ नहीं आई कि इस फिल्म के सबसे हिट गाने छिल गए नैना को फिल्म में क्यों नहीं रखा गया।

क्यों देखें : अगर कुछ नया, लीक से हटकर देखना चाहते हैं तो इस फिल्म को हर्गिज मिस न करें। यकीनन, फिल्म देखते वक्त आप कहानी और किरदारों के साथ भी जुड़ जाएंगे। अनुष्का शर्मा और दर्शन कुमार की यादगार अभिनय। कमजोर दिल वाले वीभत्स हिंसा और मारपीट के सीन्स वाली इस फिल्म को इग्नोर ही करें तो अच्छा है। एंटरटेनमेंट और मुंबइया मसाला फिल्मों के शौकीन और फैमिली के साथ थिएटर जाने वाले 'एनएच 10' देखने से परहेज करें। सौजन्य: NBT



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